Rig Veda - Book 05 - Hymn 1
Text: Rig Veda Book 5 Hymn 1 अबोध्य अग्निः समिधा जनानाम परति धेनुम इवायतीम उषासम | यह्वा इव पर वयाम उज्जिहानाः पर भानवः सिस्रते नाकम अछ || अबोधि होता यजथाय देवान ऊर्ध्वो अग्निः सुमनाः परातर अस्थात | समिद्धस्य रुशद अदर्शि पाजो महान देवस तमसो निर अमोचि || यद ईं गणस्य रशनाम अजीगः शुचिर अङकते शुचिभिर गोभिर अग्निः | आद दक्षिणा युज्यते वाजयन्त्य उत्तानाम ऊर्ध्वो अधयज जुहूभिः || अग्निम अछा देवयताम मनांसि चक्षूंषीव सूर्ये सं चरन्ति | यद ईं सुवाते उषसा विरूपे शवेतो वाजी जायते अग्रे अह्नाम || जनिष्ट हि जेन्यो अग्रे अह्नां हितो हितेष्व अरुषो वनेषु | दमे-दमे सप्त रत्ना दधानो ऽगनिर होता नि षसादा यजीयान || अग्निर होता नय असीदद यजीयान उपस्थे मातुः सुरभा उलोके | युवा कविः पुरुनिष्ठ रतावा धर्ता कर्ष्टीनाम उत मध्य इद्धः || पर णु तयं विप्रम अध्वरेषु साधुम अग्निं होतारम ईळते नमोभिः | आ यस ततान रोदसी रतेन नित्यम मर्जन्ति वाजिनं घर्तेन || मार्जाल्यो मर्ज्यते सवे दमूनाः कविप्रशस्तो अतिथिः शिवो नः | सहस्रश्र्ङगो वर्षभस तदोजा विश्वां अग्ने सहसा परास्य अन्यान || पर सद्यो अग्ने अत्य एष्य अन्यान आविर यस्मै चारुतमो बभूथ | ईळेन्यो वपुष्यो विभावा परियो विशाम अतिथिर मानुषीणाम || तुभ्यम भरन्ति कषितयो यविष्ठ बलिम अग्ने अन्तित ओत दूरात | आ भन्दिष्ठस्य सुमतिं चिकिद्धि बर्हत ते अग्ने महि शर्म भद्रम || आद्य रथम भानुमो भानुमन्तम अग्ने तिष्ठ यजतेभिः समन्तम | विद्वान पथीनाम उर्व अन्तरिक्षम एह देवान हविरद्याय वक्षि || अवोचाम कवये मेध्याय वचो वन्दारु वर्षभाय वर्ष्णे | गविष्ठिरो नमसा सतोमम अग्नौ दिव्ञ्व रुक्मम उरुव्यञ्चम अश्रेत ||...