Rig Veda - Book 04 - Hymn 1
Text: Rig Veda Book 4 Hymn 1 तवां हय अग्ने सदम इत समन्यवो देवासो देवम अरतिं नयेरिर इति करत्वा नयेरिरे | अमर्त्यं यजत मर्त्येष्व आ देवम आदेवं जनत परचेतसं विश्वम आदेवं जनत परचेतसम || स भरातरं वरुणम अग्न आ वव्र्त्स्व देवां अछा सुमती यज्ञवनसं जयेष्ठं यज्ञवनसम | रतावानम आदित्यं चर्षणीध्र्तं राजानं चर्षणीध्र्तम || सखे सखायम अभ्य आ वव्र्त्स्वाशुं न चक्रं रथ्येव रंह्यास्मभ्यं दस्म रंह्या | अग्ने मर्ळीकं वरुणे सचा विदो मरुत्सु विश्वभानुषु तोकाय तुजे शुशुचान शं कर्ध्य अस्मभ्यं दस्म शं कर्धि || तवं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान देवस्य हेळो ऽव यासिसीष्ठाः | यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा दवेषांसि पर मुमुग्ध्य अस्मत || स तवं नो अग्ने ऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो वयुष्टौ | अव यक्ष्व नो वरुणं रराणो वीहि मर्ळीकं सुहवो न एधि || अस्य शरेष्ठा सुभगस्य संद्र्ग देवस्य चित्रतमा मर्त्येषु | शुचि घर्तं न तप्तम अघ्न्याया सपार्हा देवस्य मंहनेव धेनोः || तरिर अस्य ता परमा सन्ति सत्या सपार्हा देवस्य जनिमान्य अग्नेः | अनन्ते अन्तः परिवीत आगाच छुचिः शुक्रो अर्यो रोरुचानः || स दूतो विश्वेद अभि वष्टि सद्मा होता हिरण्यरथो रंसुजिह्वः रोहिदश्वो वपुष्यो विभावा सदा रण्वः पितुमतीव संसत || स चेतयन मनुषो यज्ञबन्धुः पर तम मह्या रशनया नयन्ति स कषेत्य अस्य दुर्यासु साधन देवो मर्तस्य सधनित्वम आप || स तू नो अग्निर नयतु परजानन्न अछा रत्नं देवभक्तं यद अस्य | धिया यद विश्वे अम्र्ता अक्र्ण्वन दयौष पिता जनिता सत्यम उक्षन || स जायत परथमः पस्त्यासु महो बुध्ने रजसो अस्य योनौ | पर शर्ध आर्त परथमं विपन्यं रतस्य योना वर्षभस्य नीळे | सपार्हो युवा वपुष्यो विभावा सप्त परियासो ऽजनयन्त वर्ष्णे || अस्माकम अत्र पितरो मनुष्या अभि पर सेदुर रतम आशुषाणाः | अश्मव्रजाः सुदुघा वव्रे अन्तर उद उस्रा आजन्न उषसो हुवानाः || ते मर्म्र्जत दद्र्वांसो अद्रिं तद एषाम अन्ये अभितो वि वोचन | पश्वयन्त्रासो अभि कारम अर्चन विदन्त जयोतिश चक्र्पन्त धीभिः || ते गव्यता मनसा दर्ध्रम उब्धं गा येमानम परि षन्तम अद्रिम | दर्ळ्हं नरो वचसा दैव्येन वरजं गोमन्तम उशिजो वि वव्रुः || ते मन्वत परथमं नाम धेनोस तरिः सप्त मातुः परमाणि विन्दन | तज जानतीर अभ्य अनूषत वरा आविर भुवद अरुणीर यशसा गोः || नेशत तमो दुधितं रोचत दयौर उद देव्या उषसो भानुर अर्त | आ सूर्यो बर्हतस तिष्ठद अज्रां रजु मर्तेषु वर्जिना च पश्यन || आद इत पश्चा बुबुधाना वय अख्यन्न आद इद रत्नं धारयन्त दयुभक्तम | विश्वे विश्वासु दुर्यासु देवा मित्र धिये वरुण सत्यम अस्तु || अछा वोचेय शुशुचानम अग्निं होतारं विश्वभरसं यजिष्ठम | शुच्य ऊधो अत्र्णन न गवाम अन्धो न पूतम परिषिक्तम अंशोः || विश्वेषाम अदितिर यज्ञियानां विश्वेषाम अतिथिर मानुषाणाम | अग्निर देवानाम अव आव्र्णानः सुम्र्ळीको भवतु जातवेदाः ||...