Rig Veda - Book 08 - Hymn 80
Text: Rig Veda Book 8 Hymn 80 नह्यन्यं बळाकरं मर्डितारं शतक्रतो | तवं न इन्द्र मर्ळय || यो नः शश्वत पुराविथाम्र्ध्रो वाजसातये | स तवं न इन्द्र मर्ळय || किमङग रध्रचोदनः सुन्वानस्यावितेदसि | कुवित सविन्द्रणः शकः || इन्द्र पर णो रथमव पश्चाच्चित सन्तमद्रिवः | पुरस्तादेनं मे कर्धि || हन्तो नु किमाससे परथमं नो रथं कर्धि | उपमं वाजयु शरवः || अवा नो वाजयुं रथं सुकरं ते किमित परि | अस्मान सुजिग्युषस कर्धि || इन्द्र दर्ह्यस्व पूरसि भद्रा त एति निष्क्र्तम | इयं धीरतवियावती || मा सीमवद्य आ भागुर्वी काष्ठा हितं धनम | अपाव्र्क्ता अरत्नयः || तुरीयं नाम यज्ञियं यदा करस्तदुश्मसि | आदित पतिर्न ओहसे || अवीव्र्धद वो अम्र्ता अमन्दीदेकद्यूर्देवा उत याश्च देवीः | तस्मा उ राधः कर्णुत परषस्तं परातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात ||...